Puja Aartis
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Aarti Collection
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥ जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा॥ पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥ जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा॥ अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा॥ 'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा॥ माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांपे॥ आरती कीजै... अंजनि पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥ आरती कीजै... दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥ आरती कीजै... लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥ आरती कीजै... लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे॥ आरती कीजै... लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्रान उबारे॥ आरती कीजै... पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥ आरती कीजै... बाएं भुजा असुर दल मारे। दहिने भुजा संतजन तारे॥ आरती कीजै... सुर नर मुनि आरती उतारे। जय जय जय हनुमान उचारे॥ आरती कीजै... कंचन थार कपूर लौ छाई। आरति करत अंजना माई॥ आरती कीजै... जो हनुमानजी की आरति गावै। बसि बैकुंठ परम पद पावै॥ आरती कीजै हनुमान लला की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला॥ आरती कुंजबिहारी की... गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक॥ चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की॥ आरती कुंजबिहारी की... कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं। गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग॥ ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की॥ आरती कुंजबिहारी की... जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्री गंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस, जटा के बीच॥ हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की॥ आरती कुंजबिहारी की... चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू। चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू, हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद॥ कटत भव फंद, टेर सुन दीन भिखारी की॥ आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की॥ दशरथ-तनय, कौशल्या-नन्दन, सुर, मुनि, रक्षक, दैत्य-निकन्दन॥ अनुगत-भक्त, भक्त-उर-चन्दन, मर्यादा-पुरुषोत्तम, वर की॥ आरती कीजै श्री रघुवर जी की... निर्गुण, सगुण, अनूप, रूप-निधि, सकल-लोक-वन्दित, विभिन्न-विधि॥ हरण-शोक-भय, दायक सब-सिधि, माया-रहित, दिव्य नर-वर की॥ आरती कीजै श्री रघुवर जी की... जानकि-पति, सुर-अधिपति, जगपति, अखिल-लोक-पालक, त्रिभुवन-पति॥ विश्व-वन्द्य, अवनीश, सुर-मति, एकमात्र गति सब शरणागत की॥ आरती कीजै श्री रघुवर जी की... शरणागत-वत्सल, व्रतधारी, भक्त-कल्प-तरु, तुसली-वन-चारी॥ परम-धन्य, धन-धाम-त्यागी, गान-गान महिमा, सुर-नर की॥ आरती कीजै श्री रघुवर जी की...
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का। स्वामी दुःख बिनसे मन का। सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी। तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता। स्वामी तुम पालनकर्ता। मैं मूरख खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ तुम हो एक अगोचर, सब के प्राणपति। स्वामी सब के प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ दीनबंधु दुःखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे। स्वामी ठाकुर तुम मेरे। अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश हरे॥ विषय विकार मिटाओ, पाप हro देवा। स्वमी पाप हरो देवा। श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश हरे॥
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा। सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ रत्न जड़ित सिंहासन, अद्भुत छवि राजे। नारद करत निराजन, घण्टा ध्वनि बाजे॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दर्श दियो। बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी। चन्द्रचूड़ एक राजा, तिनकी विपत्ति हरी॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्ही। सो फल भोग्यो प्रभुजी, फिर स्तुति कीन्ही॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ भाव भक्ति के कारण, छिन-छिन रूप धरयो। श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ ग्वाल बाल संग राजा, बन में भक्ति करी। मनवांछित फल दीन्हों, दीनदयाल हरी॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ चढ़त प्रसाद सवायो, कदली फल, मेवा। धूप दीप तुलसी से, राजी सत्यदेवा॥ जय लक्ष्मी रमणा॥ श्री सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, वांछित फल पावे॥ जय लक्ष्मी रमणा॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥ महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा। जय काली और गौरा देवी कृत सेवा॥ जय भैरव देवा... तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक। भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक॥ जय भैरव देवा... वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी। महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी॥ जय भैरव देवा... तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे। चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे॥ जय भैरव देवा... तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी। कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी॥ जय भैरव देवा... पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू डमकावत। बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत॥ जय भैरव देवा... बटुकनाथ की आरती जो कोई नर गावे। कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे॥ जय भैरव देवा...
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी। तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥ जय अम्बे गौरी... मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को। उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको॥ जय अम्बे गौरी... कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै। रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै॥ जय अम्बे गौरी... केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी। सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥ जय अम्बे गौरी... कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती। कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योति॥ जय अम्बे गौरी... शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती। धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥ जय अम्बे गौरी... चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ जय अम्बे गौरी... ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी। आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे गौरी... चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू। बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू॥ जय अम्बे गौरी... तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता। भक्तन की दुख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे गौरी... भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी। मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी॥ जय अम्बे गौरी... कंचन थार विराजत, अगर कपूर बाती। श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे गौरी... श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै। कहत शिवानन्द स्वामी, सुख-सम्पत्ति पावै॥ जय अम्बे गौरी...
हर हर हर महादेव! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव सबके स्वामी। अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी॥ हर हर हर महादेव! आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी। अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर हर महादेव! ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तुम त्रिमूर्तिधारी। कर्ता, भर्ता, धर्ता, तुम ही संहारी॥ हर हर हर महादेव! रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी। साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता अभिमानी॥ हर हर हर महादेव! मणिमय-भवन-निवासी, अति भोगी, रागी। सदा मसानबिहारी, योगी वैरागी॥ हर हर हर महादेव! छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल व्याली। चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हर हर हर महादेव! प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीत-जटाधारी। विवसन, विकट-रूपधर, रुद्र प्रलयकारी॥ हर हर हर महादेव! शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी। अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि-मन-हारी॥ हर हर हर महादेव! निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय, नित्य-प्रभो। कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हर हर हर महादेव! सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय, धाता। प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता॥ हर हर हर महादेव! हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै। सब विधि निर्मल मति कर, अपना कर लीजै॥ हर हर हर महादेव!